Monday, March 7, 2011

Karwi

rwi ( 25 80 ° / 25.2 ° N 80.9 54'E 12'N ° ° 25.2 / ई, 80.9 ) में एक शहर है चित्रकूट जिले के उत्तर प्रदेश में भारत . Before the Sepoy Mutiny it was the residence of a Maratha noble, whose accumulations constituted the treasure afterwards famously known as the Kirwee and Banda Prize Money . इससे पहले कि सिपाही विद्रोह यह एक निवास था मराठा महान, राशि जिसका पैसा गठित पुरस्कार खजाना बांदा और बाद में प्रसिद्धि के रूप में जाना Kirwee. It comes under the Karwi tehsil . यह Karwi आता तहत तहसील . The town has its own railway station. शहर की अपनी रेलवे स्टेशन है. The town of Kirwee in New Zealand 's Canterbury region was named after Karwi by a retired British Army colonel. शहर के Kirwee में न्यूज़ीलैंड के कैंटरबरी क्षेत्र कर्नल सेना नामित किया गया था के बाद ब्रिटिश Karwi द्वारा एक सेवानिवृत्त. the city has rail connections to major cities like delhi kolkatta jabalpur kanpur luckhnow famous doctors in karwi Dr surendra agarwal, dr mahendra gupta famous lawyers ashok gupta शहर दिल्ली कोलकाता karwi डॉ. सुरेंद्र अग्रवाल में जबलपुर कानपुर luckhnow प्रसिद्ध डॉक्टरों की तरह प्रमुख शहरों से रेल कनेक्शन है, डॉ. महेंद्र गुप्ता प्रसिद्ध वकील अशोक गुप्ता

4 comments:

  1. चित्रकूट धाम मंडल में 852 स्थानो पर हो रहा खनन् प्रकृति को सन्तुलित रखने वाले बुन्देलखण्ड मे सर्वाधिक त्रासदी का प्रकोप पहाड़, उन पर लगी हुई भारी भरकम खदाने और रोजमर्रा की तरह दिन रात हो रहे धमाको से जहां आस-पास के स्कूलो मे मातम है वही पिछले ढाई दशको के अन्तराल मे मरने वाले श्रमिक, आम नागरिक के जहन मे आज भी इन खदानो के प्रति दबा हुआ जनाक्रोश है लेकिन सरकार को उनकी औकात बताने वाले बुन्देलखण्ड के दबंगो मे शामिल खनन् माफिया के आगें जमीन का आदमी भला कैसे सिर उठाने कि जहमत कर सकता है। महोबा, चित्रकूट, बांदा मे जिन क्षेत्रों पर खनन् जारी है वहां लगातार अनाधिकृत रूप से प्रकृति की सम्पदा का दोहन हो रहा है। जनपद बांदा मे मटौंध कस्बा के सिद्ध बाबा व गणेशिया पहाड़ी पर चार हेक्टेयर भूमि वर्ग कि0मी0 प्रभाव के दायरे मे है वहीं नरैनी तहसील के बड़े इलाके मे पहाड़ो पर अवैध खनन् जारी है कुल 250 हेक्टेयर भूमि अनुमानित तौर पर लीज के क्षेत्र मे आती है, महोबा मे कुल 330 खदाने है जिनमे 2500 हेक्टेयर भूमि प्रभावित है, चित्रकूट मे कुल 272 खदानो पर पत्थर तोडने का कार्य किया जाता है जिसमे लगभग 2200-2400 हेक्टेयर भूमि खनन् क्षेत्र मे है। इसके अतिरिक्त कृषि भूमि व प्रदूषण से प्रभावित हजारो वर्ग कि0मी0 की उपजाऊ भूमि अलग से सम्मलित है। बुन्देलखण्ड मे प्राकृतिक दोहन का उच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान जनहित याचिका मे प्रदेश के प्रमुख सचिव माइन्स एवं मिनरल्स, लखनऊ की तरफ से काउन्टर हलफनामा दाखिल खनन् माफियाआंें के द्वारा बुन्देलखण्ड क्षेत्र विशेष मे प्राकृतिक सम्पदा का दोहन रोकने को लेकर किये जा रहे जनसंघर्ष और पहाड़ो, वनो, वन्यजीवो के पुर्नवास हेतु उच्च न्यायालय मे दायर जनहित याचिका की बीते 22.12.2010 को हुई सुनवाई केे दौरान पक्षकारो की तरफ से पैरवी करते हुये हाई कोर्ट वरिष्ठ वकील डा0 एच0 एन0 त्रिपाठी ने मुख्य न्यायधीश के समक्ष काउन्सिल पार्टी न0 5 की तरफ से एक काउन्टर हलफनामा जवाब लगाया है जिसमे उ0प्र0 प्रमुख सचिव माइन्स एवं मिनरल्स व पांच अन्य की तरफ से कहा कि स्वयं सेवी संगठन प्रवास द्वारा जनहित याचिका मे यह बतलाया जाय कि बुन्देलखण्ड जिन स्थानो पर खदाने, ब्लास्टिगं की जा रही है वह कुल कितने हेक्टेयर भूमि है। साथ ही उन्होने स्वीकार किया है कि उ0प्र0 प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से पटटे् धारको खनन् से पहले अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना चाहिये जबकि पूर्व मे जन सूचना अधिकार के तहत प्रदूषण बोर्ड निदेशक ने यह स्वीकार किया है कि लीज धारक विभाग से कोई सहमति नही लेते है। दायर याचिका मे प्रमुख रूप से पाचं मागों को रखा गया है जिसमे अधिकृत रूप से गौरतलब है! माइन्सं एवं सेफ्टी जनरल डायरेक्टर को न्यायालय द्वारा यह निर्देश दिया जाय वह प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने के उपरान्त ही खनन् की अनुमति प्रदान करेंगे। केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड व यू0पी0 स्टेट माइनिगं विभाग से भी खनिज, खनन् करने वाले लीज धारक एन0ओ0सी0 लेने के बाद ही खदान शुरू करेंगे। उ0प्र0 राज्य सरकार इस बात सुनिश्चित करेगी की माइनिगं अधिनियम 1961 का किसी भी दशा मे उलघंन नही किया जायेगा तथा खनन् को प्रत्येक माह सर्वे के दायरे मे लाया जाय। कोर्ट से याचिका कर्ता ने यह भी निवेदन किया है कि खदानो मे हुई ब्लास्टिगं व खनन् करने के समय हुई अब तक कि मौतो का उचित मुआवजा, परिवारिक जनेा को सरकार से सुरक्षा प्रदान की जाये। संगठन की दाखिल याचिका का सम्पूर्ण खर्चा उ0प्र0 सरकार से दिलाया जाय। इस जनमुहिम को सार्थक करने के लिये मण्डल के सभी जनपदो, गावों मे हस्ताक्षर अभियान व पोस्ट कार्ड से केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भी घेरे मे लिये जाने की कारगर पहल की जा रही है। आशीष सागर

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  2. बुन्देलखण्ड में आत्महत्त्याऎं (एक अध्ययन) अब मैं पेड़ों की डखेतों से काट देने की सजा पाता हूँ। पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र (पास्क) बलखण्डीनाका बांदा, उत्तर प्रदेश आपके लिए.. बुन्देलखण्ड

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  3. विगत 20 वर्षों से सूखा, बाढ़, फसलों मंे कीट उससे उपजी गांव में साल भर परिवार को रोटी देने का ठेका खेत ही लेते थे। एक साल एक खेत में रबी तो दूसरे साल उस खेत में खरीफ। वह भी किसी भी फसल में एक जिंस कभी नहीं बुआई कम से कम तीन जिंस मिलाकर यदि एक धोखा देगी तो दूसरी काम चला देगी। और यदि तीनों फसल साथ दे गयीं तो किसान और उसके मजदूरी दोनों की ही एक एक बेटी की सादी निपट ही गयी। जायद की फसल नदी अथवा तालाब के किनारे और नदियों के रेत में लेकिन यह खेती केवल जल जीवी जातियां करेंगी दूसरी जाति के किसी व्यक्ति ने यह खेती की तो समझिए की उसका सामाजिक स्तर गिर गया। मजबूत सामाजिक व्यवस्थाः सामाजिक व्यवस्थाएं इतनी व्यवस्थित और मजबूत की यदि खेत में थोड़ा भी पैदा हुआ तो आदमी तो क्या गांव में कुत्ते, बिल्ली, पशु पक्षी भी भूखा न सोंए। हुनर वाली जातियां लोहार, बढ़ई, कुम्हार, तमोली कहार, चमार, डोमार सभी का खेती की पैदावार में हिस्सेदारी जब किसान का घर अमीर तब इनका भी और जब किसान का घर गरीब तब इनका भी। बाजार भी गांव की इस सामाजिक व्यवस्था से नियंत्रित था जो वस्तु गांव में उपलब्ध है तथा जो गांव के लिए लाभकारी नहीं है क्या मजाल कि बड़ा से बड़ा सेठ और साहूकार उन वस्तुओं को बाहर से लाकर गांव में बेंच सके। तबाही की शुरूआत बुन्देलखण्ड सृष्टिकाल से ही अपनी परिस्थितिकीय तथा भूगर्भीय सम्पदा के लिए जाना जाता रहा है। यहां की इस सम्पदा से ललचाकर हमेशा ही देश के बाहर से तथा देश के अंदर के भी शासकों ने यहां लूटपाट के लिए आक्रमण करते रहे हैं। यदि विदेशी लुटेरे लूट कर अपने देश वापस चले गए तब भी कोई खास बात नहीं लेकिन यदि लूटपाट के बाद वह यही देश में ही रूककर शासन करने लगे तब तो उन्होंने बुन्देलखण्ड से चुन-चुनकर बदले लिए। बुन्देलखण्ड प्राकृतिक सम्पदा के साथ ही साथ अपने स्वाभिमान, लड़ाकूपन और कम से कम संसाधनो में जीकर अपनी प्राकृतिक सम्पदा तथा आन-मान-सान की रक्षा में संधर्ष के लिए भी विख्यात रहे है। यही कारण है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दमन के खिलाफ बुन्देलखण्ड ने 1856 में आजादी के लिए संधर्ष छेड दिया था। यही कारण है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बाद जब वर्तानिया क्राउन ने गद्दी सम्भाली तो उसने यहाॅ को तबाह करने में कसर नहीं छोड़ी। चूकि शासक विदेशी था अतः लोगों ने संभल-संभल कर अपने बनाई जिसने हमारे पारम्परिक बीजों और पारम्परिक कृषि तकनीक का सफाया हो गया जो दैवी आपदाओं के समय भी यहाॅ के लिए वरदान साबित होते रहे है। मानवकृत दैवीय आपदाएं: देशी शासकों ने केवल वोट की लालच में अनावश्यक, अवैज्ञानिक तथा धटिया तकनीकि से यहाॅ नदियों में बाॅध, पुल, रपटे तथा चेक डैम बनाए गये जिन्होने बुन्देलखण्ड में उसी वर्ष सुखा और उसी वर्ष बाढ को निरन्तरता प्रदान की। बुन्देलखण्ड के मशहूर गाॅव-गाॅव में फैले चन्देल कालीन तालाब कूडेदान बन गए जिनमें अब शहरों में मकान और गाॅवों में खेत बना डाले गये। कृषि की उन्नत तकनीकि और बीजो के लिए यहाॅ के किसान को पहले आदी बनाया गया और जब वह आदी हो गया तब वह सारी चीजे किसान की पहुॅच से साजिशन दूर कर दी गयी। औसत वर्षाः यहां की वार्षिक औसत वर्षा 760 मि.मी. है। जिन सालों में यहां भयंकर सूखा पड़ता है उन सालों में भी यहां राष्ट्रीय वार्षिक औसत वर्षा से अधिक पानी ही बरसता है। फिर भी सूखाः इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की कुल वारिस का पानी दो से पांच दिनों के अंतराल ही में बरस जाता है। शेष साल सूखा रहता है चूकि मेड़े और बंधियां सब टूट गयी हैं अतः बरसात का पानी अपने साथ खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बहाता हुआ नदियों के साथ सागर में समा जाता है। और साल भर के लिए यहां सूखा

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  4. छोड़ जाता है। सूखा और बाढ़ एक साथः यह आश्चर्य जनक किन्तु सत्य है कि इस क्षेत्र में सूखा और बाढ़ एक साथ ही अपना साम्राज्य कायम करता है। एक साथ बरसा पानी नदियों में भीषण बाढ़ और उससे तबाही मचाता है और फिर शेष दिनों मंे पानी न बरसने के कारण यहां सूखा रहता है। चरम पर गर्मी और ठण्डकः कहने को तो समसीतोष्ण जलवायु का क्षेत्र है लेकिन इस क्षेत्र का तापमान 20ब न्यूनतम तथा 520ब अधिकतम तक पहुंचता है। तापमान की इस विचित्रता के कारण वह वनस्पति जो क्षेत्र में आद्रत सन्तुलन में सहायक होती थी अब पूरी तरह से विलुप्त होती जा रही है। आद्रता संकटः बाढ़ और सूखा के पदचाप अब तो सबको सुनाई दे जाते हैं लेकिन क्षेत्र में आद्रता दर की गिरावट की किसी को खबर नहीं है जो हमारी फसलों के बरबाद होने का एक कारण तो है ही साथ ही यहां के लोगों को पालतू जंगली पशुओं के स्वास्थ्य और स्वाभाव में भी जबरजस्त रूप से प्रभाव डालता है। यहां फरवरी और मार्च में आद्रता दर मात्र 14 से 21 रह जाती है जो यहां की प्रमुख फसल रवी में पौधों में दानों पड़ने का समय फरवरी मार्च का ही होता है उस समय वातावरण में आद्रता की कमी मिट्टी और हवा दोनों की ही नमी सुखा देती है जिससे फसले अपरिपक्व अवस्था में पक जाती है। फसलें देखने में तो खूब अच्छी लगती है लेकिन पैदावार बिल्कुल नहीं होती। फिर भी जिंदा रहने की कोशिश : यहाॅ के किसानो ने पहले तो घर में जमीन के अन्दर गडे धन को खोद कर बेचा काम चलाया, फिर खेत बेचा, देश के कोने कोने में भटक कर मेहनत मजदूरी से अपने बीवी बच्चो का पेट चलाया अब वहाॅ भी गुॅजायश नही तो सरकारी गैर सरकरी कर्ज लिए। लेकिन अब कर्जे की अदायगी अैार पेट की भूख के कारण किसान को सस्ता सरल आसान तरीका मिल गया है आत्महत्या! । वर्ष 2002 में किसानेा की आत्म हत्याओं का ग्राफ अचानक बढ गया। स्थिति की भयंकरता के मद्देनजर पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र ने मुद्दे पर एक अध्ययन करने की योजना बनायी और इस अध्ययन के लिए सहभागी शिक्षण ट्रस्ट ने सहयोग का आश्वासन दिया जिसके आधार पर यह अध्ययन प्रारम्भ किया अध्ययन की यह रिपोर्ट 1 जनवरी 2003 से अगस्त 2006 तक का प्रकाशित की जा रही है। तथ्य संकलन : किसान की खेती कितनी हानिकारक हुर्ह। फसल किस किसान की कितनी कम हुई यह पता लगाना कठिन ही नही वरन बेमानी भी होगा वह इसलिए कि सरकारी आॅकड़ों में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति आय में लगातार वृद्धि गुणात्मक वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार वर्षा शुरू होने के पहले ही वर्षा की सम्भावना मात्र से कृषि उपज के आकड़े प्रस्तुत कर देते है। इसलिए कृषि उपज वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ने किसानों और गाॅव पर क्या प््राभाव छोड़ा इस बात की जानकारी करने की आवश्यकता महसूश की गयी थी। गाॅव और किसान की विकास दर को जानने के लिए गाॅव छोड़ रोजी की तलाश में बाहर जाने वालों के आकड़े एकत्र किए गए। पलायन: सरकार के आकड़ों मंे यह दर्ज है कि रोजी की तालाश में कितने लोग घरों में ताले डाल कर ईट की चीमनियों के लिए अथवा सूरत और पंजाब कमाई के लिए चले जाते है। कोई किसान अपना घर परिवार गाॅव कुटुम्ब छोड़कर तब जाता है जब गाॅव में उसका जीवन दूभर हो जाता और उसकेा अपने जीवन में अन्धकारा दिखाई देने लगता है। सरकार के आकड़ों में ऐसे कितने परिवार है जिनको अपना जीवन अन्धकार में दिखाई पड़ता है यह सारणी बताती है। जिला पलायन करने वाले परिवार जनसंख्या अनुमानित बांदा 1964 9820 हमीरपुर 3249 16245 महोबा 7103 35515 चित्रकूट 1578 7890 योग 13894 69470 परिवार सहित पलायन के यह आंकड़े सरकारी लेकिन अतर्रा स्थित एक स्वैच्छिक सामाजिक संगठन कृष्णार्पित सेवा संस्थान ने अपने कार्य के लिए बाॅदा जिले के महुआ विकास खण्ड़ की कुछ ग्राम पंचायतों में पलायन करने वालों का अध्ययन किया था। जिसके तुलनात्मक अध्ययन से निम्न तथ्य उजागर होता है कि सरकारी आंकड़ों की तुलना में पलायन कहीं बहुत अधिक है। पलायन-विवरण गांव का नाम पलायन करने वाले परिवारों की संख्या

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