Wednesday, February 16, 2011

बुंदेलखंड का दर्द

बुंदेलखंड में नरेगा के नाम पर लूट-खसोट
सूखे के कारण बेकारी, बेजारी और भुखमरी से जूझ रहे बंुदेलखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) की हकीकत देखनी हो तो चित्रकूट के जारौमाफी या फिर महोबा के काकुन गांव तक जाना पड़ेगा। कहीं सरकारी कर्मचारियों और विकलांगों के नाम जाब कार्ड बन गए तो कहीं मृतकों से भी काम लेकर धन निकाल लिया गया। इतना ही नहीं, बगैर कोई काम कराये ही जाब कार्डो पर 50-60 दिन का कार्य दर्शा कर पूरा धन निकाल लिया गया। गरीब आदिवासी इसी में संतुष्ट हो गए कि उन्हें मुफ्त में दो से पांच सौ रुपये मिल गए। चित्रकूट के मानिकपुर विकास खंड के अंतर्गत एक गांव है जारौमाफी। करीब पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में करीब 176 जाब कार्ड बने हैं। अधिकांश कार्ड कोल जाति के लोगों के हैं। बीते वर्ष जुलाई माह में वन विभाग के फारेस्ट गार्ड ने लोगों के जाब कार्ड ले लिए और उनके कार्ड पर 50 से 60 दिन का कार्य दर्शाकर दस लाख रुपए निकाल लिये गये। इसके बदले निरक्षर कार्ड धारकों को दो से पांच सौ रुपये थमा दिये गये। विधायक विवेक सिंह ने यह मामला विधानसभा में उठाया। पाठा कोल अधिकार मंच ने भी इसे ग्राम्य विकास मंत्री एवं स्थानीय विधायक दद्दू प्रसाद के संज्ञान में लाया तो उन्होंने 12 जून, 2009 को प्रभागीय वनाधिकारी को अवशेष मजदूरी दिलाने और फर्जी कार्य के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा।
फिलहाल अभी इस प्रकरण में आगे कुछ नहीं हुआ। वन विभाग ने ग्राम अमरपुर, गदवा, ऊंचाडीह व गर्दिया में अवशेष मजदूरी का भुगतान ही नहीं किया। ग्राम पंचायत ऊंचडीह में ग्राम पंचायत ने एक मृतक के नाम पर कार्य दिखाकर तीन हजार रुपये निकाल लिये। महोबा के चरखारी विकास खंड अंतर्गत कीरतपुरा के मजरे काकुन में दोनों पैरों से विकलांग ओम प्रकाश के नाम से जाब कार्ड पर कार्य दर्शा कर नौ हजार रुपये मेहनताना भी निकाल लिया गया। महोबा के चरखारी ब्लाक के अस्तौन गांव निवासी एक अवर अभियंता जैदपुर विकासखंड में तैनात हैं, उन्हें नरेगा में संविदा पर भी रख लिया गया। हकीकत यह है कि बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में नरेगा अफसरशाही का शिकार हो रही है। हस्ताक्षर करने वालों को भी फर्जी नियम बताकर अंगूठा लगवाकर जाब कार्ड बनवाये गए हैं ताकि किसी और से अंगूठा लगवाकर फर्जी कार्य दिवसों का भुगतान हड़पा जा सके।
साभार : दैनिक जागरण
( बांदा में प्रेम किशोर तिवारी, चित्रकूट में विजय शुक्ल तथा उरई में केपी सिंह)
Posted by बुंदेलखंड का दर्द at 5:21 AM 0 comments
बुंदेलखंड में आधा भी न रहा पशुधन

चावल सी बयें दूद की नदियां, बाजै दुहिनिया कछार। दूधन पूतन गोरी धन फलवै, हार पहारन करौ सिंगार, कारस तेरी होवे जय-जयकार। बंुदेलखंड के अध्यात्मिक कारसों का यह आशीष अब परवान नहीं चढ़ रहा है। खेती-किसानी के बाद सूखे का सर्वाधिक असर पशुधन पर पड़ा है। जिन दुधारू पशुओं और बैलों को परिवार के सदस्य की भांति मानने की बंुदेली परंपरा थी, उन्हें खूंटे से खोलने पर लोग विवश हो गए। बीते पांच वर्षो में बंुदेलखंड में 60-70 फीसदी दुग्ध उत्पादन कम हुआ। इसका सीधा असर ग्रामीण पशुपालकों की जेब पर पड़ा। मंुगुश गांव में एक दशक पहले तक अधिक से अधिक दुधारू गाय-भैंस पालना स्टेटस सिंबल हुआ करता था। पहलवान खुद तो दूध पीते ही थे, इसे बेचकर परिवार की अन्य जरूरतों को भी पूरा करते। सूखे के कारण चारा-पानी का संकट आने पर लोगों ने अपने पशुओं को छोड़ना शुरू किया, हालात और बिगड़े तो पशुधन बेच दिया। इसी का नतीजा है कि पशुओं की संख्या घटने लगी। पूर्व प्रधान लल्लू पहलवान बताते हैं कि दस भैंस व पांच गायों में अब सिर्फ एकगाय और एक भैंस बची है। पूर्व प्रधान विश्वम्भर सिंह पटेल कहते हैं कि बचपन से कभी अपने दरवाजे 30-35 से कम दुधारू जानवर नहीं देखे, लेकिन अब दो बचे हैं। दर्जन से अधिक भैंसे रखने वाले गयाचरन पटेल बताते हैं कि पहले खेती-किसानी की भी लागत पूंजी दूध-खोया बेचकर निकाल ली जाती थी, लेकिन अब तो घर की जरूरत भर को भी दूध नहीं होता।
हमीरपुर जिले में बेतवा के किनारे बसे स्वासा बुजुर्ग व कुम्हाऊपुर गांवों की गणना प्रमुख दुग्ध उत्पादक गांवों में होती थी। बेतवा का कछार पशुपालकों को चारागाह के रूप में वरदान सा था। चार हजार की आबादी वाले स्वासा बुजुर्ग गांव में पहले लोगों के दरवाजे पर आधा दर्जन से कम पशु नही होते थे, लेकिन अब तो एक-दो मवेशी भी पालना मुश्किल है। यही कारण है कि यहां पर सहकारी दुग्ध समिति की ओर से 10 वर्ष पहले खोली गयी डेरी भी चार साल से बंद है। पशुपालक ईंट-भट्ठों पर मजदूरी कर रहे हैं। कुम्हाऊपुर में तो मवेशियों की संख्या 70 फीसदी घट गयी। उरई में दुग्ध सहकारी संघ की डेरी में पहले 11 हजार लीटर दूध रोजाना संग्रह किया जाता था, लेकिन अब पांच हजार लीटर भी संग्रह करना मुश्किल है। चित्रकूट में 2003-04 की गणना में 619746 गाय, भैंस, बछड़े, घोड़े व खच्चर आदि थे, अब इनकी संख्या आधी भी नहीं रह गयी है। महोबा की हालत भी कुछ ऐसी ही है। सरकार ने भी माना, पशुधन घटा दुग्ध विकास मंत्री अवध पाल सिंह यादव मानते हैं कि सूखे के कारण बंुदेलखंड में दुधारू पशुओं की संख्या और दुग्ध उत्पादन पर भी असर पड़ा है। उन्होंने बताया कि प्रकृति के इस कहर के बावजूद 179 गांवों में नयी दुग्ध समितियां गठित की गयी हैं। 124 आटोमेटिक मिल्क कलेक्शन केंद्रों व 14 बल्क मिल्क कूलर की स्थापना की गयी। नस्ल सुधार हेतु 46 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र भी स्थापित किये गए। इसके बावजूद बंुदेलखंड में चारा व पानी की समस्या से निपटने के लिए वृहद कार्ययोजना तैयार क

2 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  2. हमारी तरफ से आपको व आपके परिवार के होली की ढ़ेरों शुभकामनाएं, ईश्वर करे आपके परिवार में यूं हीं रंग बिरंगी खुशियां आती रहें..... happy holi

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