Wednesday, February 16, 2011

बुंदेलखंड का दर्द

बुंदेलखंड में नरेगा के नाम पर लूट-खसोट
सूखे के कारण बेकारी, बेजारी और भुखमरी से जूझ रहे बंुदेलखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (नरेगा) की हकीकत देखनी हो तो चित्रकूट के जारौमाफी या फिर महोबा के काकुन गांव तक जाना पड़ेगा। कहीं सरकारी कर्मचारियों और विकलांगों के नाम जाब कार्ड बन गए तो कहीं मृतकों से भी काम लेकर धन निकाल लिया गया। इतना ही नहीं, बगैर कोई काम कराये ही जाब कार्डो पर 50-60 दिन का कार्य दर्शा कर पूरा धन निकाल लिया गया। गरीब आदिवासी इसी में संतुष्ट हो गए कि उन्हें मुफ्त में दो से पांच सौ रुपये मिल गए। चित्रकूट के मानिकपुर विकास खंड के अंतर्गत एक गांव है जारौमाफी। करीब पांच हजार की आबादी वाले इस गांव में करीब 176 जाब कार्ड बने हैं। अधिकांश कार्ड कोल जाति के लोगों के हैं। बीते वर्ष जुलाई माह में वन विभाग के फारेस्ट गार्ड ने लोगों के जाब कार्ड ले लिए और उनके कार्ड पर 50 से 60 दिन का कार्य दर्शाकर दस लाख रुपए निकाल लिये गये। इसके बदले निरक्षर कार्ड धारकों को दो से पांच सौ रुपये थमा दिये गये। विधायक विवेक सिंह ने यह मामला विधानसभा में उठाया। पाठा कोल अधिकार मंच ने भी इसे ग्राम्य विकास मंत्री एवं स्थानीय विधायक दद्दू प्रसाद के संज्ञान में लाया तो उन्होंने 12 जून, 2009 को प्रभागीय वनाधिकारी को अवशेष मजदूरी दिलाने और फर्जी कार्य के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा।
फिलहाल अभी इस प्रकरण में आगे कुछ नहीं हुआ। वन विभाग ने ग्राम अमरपुर, गदवा, ऊंचाडीह व गर्दिया में अवशेष मजदूरी का भुगतान ही नहीं किया। ग्राम पंचायत ऊंचडीह में ग्राम पंचायत ने एक मृतक के नाम पर कार्य दिखाकर तीन हजार रुपये निकाल लिये। महोबा के चरखारी विकास खंड अंतर्गत कीरतपुरा के मजरे काकुन में दोनों पैरों से विकलांग ओम प्रकाश के नाम से जाब कार्ड पर कार्य दर्शा कर नौ हजार रुपये मेहनताना भी निकाल लिया गया। महोबा के चरखारी ब्लाक के अस्तौन गांव निवासी एक अवर अभियंता जैदपुर विकासखंड में तैनात हैं, उन्हें नरेगा में संविदा पर भी रख लिया गया। हकीकत यह है कि बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में नरेगा अफसरशाही का शिकार हो रही है। हस्ताक्षर करने वालों को भी फर्जी नियम बताकर अंगूठा लगवाकर जाब कार्ड बनवाये गए हैं ताकि किसी और से अंगूठा लगवाकर फर्जी कार्य दिवसों का भुगतान हड़पा जा सके।
साभार : दैनिक जागरण
( बांदा में प्रेम किशोर तिवारी, चित्रकूट में विजय शुक्ल तथा उरई में केपी सिंह)
Posted by बुंदेलखंड का दर्द at 5:21 AM 0 comments
बुंदेलखंड में आधा भी न रहा पशुधन

चावल सी बयें दूद की नदियां, बाजै दुहिनिया कछार। दूधन पूतन गोरी धन फलवै, हार पहारन करौ सिंगार, कारस तेरी होवे जय-जयकार। बंुदेलखंड के अध्यात्मिक कारसों का यह आशीष अब परवान नहीं चढ़ रहा है। खेती-किसानी के बाद सूखे का सर्वाधिक असर पशुधन पर पड़ा है। जिन दुधारू पशुओं और बैलों को परिवार के सदस्य की भांति मानने की बंुदेली परंपरा थी, उन्हें खूंटे से खोलने पर लोग विवश हो गए। बीते पांच वर्षो में बंुदेलखंड में 60-70 फीसदी दुग्ध उत्पादन कम हुआ। इसका सीधा असर ग्रामीण पशुपालकों की जेब पर पड़ा। मंुगुश गांव में एक दशक पहले तक अधिक से अधिक दुधारू गाय-भैंस पालना स्टेटस सिंबल हुआ करता था। पहलवान खुद तो दूध पीते ही थे, इसे बेचकर परिवार की अन्य जरूरतों को भी पूरा करते। सूखे के कारण चारा-पानी का संकट आने पर लोगों ने अपने पशुओं को छोड़ना शुरू किया, हालात और बिगड़े तो पशुधन बेच दिया। इसी का नतीजा है कि पशुओं की संख्या घटने लगी। पूर्व प्रधान लल्लू पहलवान बताते हैं कि दस भैंस व पांच गायों में अब सिर्फ एकगाय और एक भैंस बची है। पूर्व प्रधान विश्वम्भर सिंह पटेल कहते हैं कि बचपन से कभी अपने दरवाजे 30-35 से कम दुधारू जानवर नहीं देखे, लेकिन अब दो बचे हैं। दर्जन से अधिक भैंसे रखने वाले गयाचरन पटेल बताते हैं कि पहले खेती-किसानी की भी लागत पूंजी दूध-खोया बेचकर निकाल ली जाती थी, लेकिन अब तो घर की जरूरत भर को भी दूध नहीं होता।
हमीरपुर जिले में बेतवा के किनारे बसे स्वासा बुजुर्ग व कुम्हाऊपुर गांवों की गणना प्रमुख दुग्ध उत्पादक गांवों में होती थी। बेतवा का कछार पशुपालकों को चारागाह के रूप में वरदान सा था। चार हजार की आबादी वाले स्वासा बुजुर्ग गांव में पहले लोगों के दरवाजे पर आधा दर्जन से कम पशु नही होते थे, लेकिन अब तो एक-दो मवेशी भी पालना मुश्किल है। यही कारण है कि यहां पर सहकारी दुग्ध समिति की ओर से 10 वर्ष पहले खोली गयी डेरी भी चार साल से बंद है। पशुपालक ईंट-भट्ठों पर मजदूरी कर रहे हैं। कुम्हाऊपुर में तो मवेशियों की संख्या 70 फीसदी घट गयी। उरई में दुग्ध सहकारी संघ की डेरी में पहले 11 हजार लीटर दूध रोजाना संग्रह किया जाता था, लेकिन अब पांच हजार लीटर भी संग्रह करना मुश्किल है। चित्रकूट में 2003-04 की गणना में 619746 गाय, भैंस, बछड़े, घोड़े व खच्चर आदि थे, अब इनकी संख्या आधी भी नहीं रह गयी है। महोबा की हालत भी कुछ ऐसी ही है। सरकार ने भी माना, पशुधन घटा दुग्ध विकास मंत्री अवध पाल सिंह यादव मानते हैं कि सूखे के कारण बंुदेलखंड में दुधारू पशुओं की संख्या और दुग्ध उत्पादन पर भी असर पड़ा है। उन्होंने बताया कि प्रकृति के इस कहर के बावजूद 179 गांवों में नयी दुग्ध समितियां गठित की गयी हैं। 124 आटोमेटिक मिल्क कलेक्शन केंद्रों व 14 बल्क मिल्क कूलर की स्थापना की गयी। नस्ल सुधार हेतु 46 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र भी स्थापित किये गए। इसके बावजूद बंुदेलखंड में चारा व पानी की समस्या से निपटने के लिए वृहद कार्ययोजना तैयार क

बुदेलखंड

खंड एकीकृत पार्टी ने की सम्पूर्ण क्रांति की शुरुआत

बुदेलखंड एकीकृत पार्टी ने महारानी लक्ष्मी बाई की जयंती से बुंदेलखंड राज्य निर्माण के लिए सम्पूर्ण क्रांति की शुरुआत की है। पार्टी का मानना है कि बुंदेलखंड राज्य तभी बनेगा जब बुंदेलखंड की जनता इसके लिए सम्पूर्ण क्रांति अख्तियार कर ले । महारानी लक्ष्मी बाई की जयंती पर झाँसी में पार्टी कार्यकर्ताओं को संकल्प दिलाते हुए पार्टी संयोजक संजय पाण्डेय ने कहा कि जिस दिन बुंदेलखंड क्षेत्र के हर घर से एक एक आदमी प्रान्त निर्माण कि लडाई से जुड़ कर सड़क पर आ जायेगा उसी दिन प्रान्त का निर्माण हो जायेगा। पार्टी ने महारानी के जन्म दिवस को सम्पूर्ण क्रांति दिवस के रूप में मनाया। पार्टी जनों ने राज्य निर्माण की मांग में ओरछा के निकट बांदा- झाँसी यात्री ट्रेन को आधे घंटे तक रोक कर उग्र क्रांति की सांकेतिक शुरुआत की। संयोजक संजय पाण्डेय के अनुसार बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी ऐसे ही उग्र कार्यक्रम पूरे वर्ष आयोजित करेगी ताकि एक ओर प्रान्त निर्माण का मुद्दा आम आदमी तक पहुँच कर जनांदोलन का रूप ले सके दूसरी ओर सरकारों पर प्रान्त गठन हेतु आवश्यक दबाव बन सके।
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर १०:४२ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: जनांदोलन, बुंदेलखण्ड, बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी, संजय पाण्डेय
बुधवार, ९ सितम्बर २००९
बुंदेलखंड मसले पर सरकारे स्पष्ट करें अपना रुख : संजय पाण्डेय
केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों का प्रतिनिधितित्व करने वाले कई वरिष्ठ नेतागण जब बुंदेलखंड आते हैं तो वहां की जनता के बीच में तो पृथक बुंदेलखंड राज्य की खुली वकालत करते है किंतु वापस आते ही इस मुद्दे को भूल जाते हैं। बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी का आरोप है कि गुमराह करने का ऐसा ही क्रम पिछले 50 सालों से चल रहा है । वर्ष 1955 में फजल अली की अध्यक्षता में गठित हुए राज्य पुनर्गठन आयोग की पुरजोर शिफारिश के बावजूद आज तक बुंदेलखंड राज्य का गठन सम्भव नही हो सका। पिछले दो वर्षों से उप्र की मुखिया मायावती अपनी जनसभाओं और रैलियों में बुंदेलखंड राज्य निर्माण की तरफ़ दारी करती हैं किंतु जब इस आशय का विधेयक राज्य विधान सभा से पारित करवाने की बात आती है तो बहन जी पीछे हट जाती हैं । इसी तरह केन्द्र की यूपीए सरकार के प्रमुख नेता गण जिनमे डॉ मनमोहन सिंह तथा राहुल गाँधी स्वयं को पृथक बुंदेलखंड राज्य का हिमायती तो बताते हैं किंतु सरकार कोई संसदीय पहल नही कर रही। पार्टी संयोजक संजय पाण्डेय ने कहा कि ऐसे हालातों में यही निष्कर्ष निकलता है कि बुंदेलखंड मसले पर पूर्व की तरह सिर्फ़ बयान बाजी से काम चलाया जा रहा है। कहा कि यद्यपि राहुल गाँधी जी में बुंदेलखंड के प्रति कुछ करने की कसक है ,किंतु उनकी सोच का क्रियान्वयन भी तो जरूरी है। सोचने या बयान देने मात्र से बुंदेलखंड की समस्या का हल तो नही हो सकता।मप्र तथा उप्र के बीच फंसे बुंदेलखंड क्षेत्र की चिर उपेक्षा का परिणाम है कि यह आज देश के सबसे पिछडे क्षेत्रों में से एक है। किंतु इसके पृथक राज्य बनने के बाद यहाँ केंद्रित विकास होने से स्थिति में सुधार आएगा । इसलिए सरकारें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर हीला हवाली न करते हुए जल्द अपना रुख स्पष्ट करें । पाण्डेय ने बुंदेलखंड वासियों से भी पलायन और आत्महत्या का रास्ता छोड़ अपने अधिकारों के लिए क्रांति अख्तियार करने की अपील की।
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर ११:४७ अपराह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: अलग प्रान्त, एकीकृत पार्टी, बुंदेलखंड
बुधवार, २ सितम्बर २००९
बुन्देलखंड : अब और देर न करे सरकार
झाँसी । बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय ने यहाँ एक कार्यक्रम में कहा कि आज बुन्देलखण्ड के किसानो को सीधी और त्वरित सहायता की जरूरत है। सूखा राहत के नाम पर विभिन्न योजनाओ में जमकर बन्दर बाँट होता है , इसलिए पात्र किसानों को समय से और उचित मात्रा में राहत राशिः नही पहुँच पाती है। केन्द्र सरकार से मांग करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को पैकेज न देकर जिलाधिकारियों के माध्यम से किसानों को सीधी सहायता मुहैया करायी जाए। ये पहले ही सिद्ध हो चुका है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसी राहत राशियों का जमकर दुरूपयोग किया है।लिहाजा अब पुनरावृत्ति से बचा जाना चाहिए। दूसरी ओर पाण्डेय ने यह भी कहा कि सूखा राहत मिलने के नियम कानून इतने जटिल होते है कि आम आदमी उन्हें समझ नही पाता है , इसलिए ऐसे में वह जान ही नही पाता है कि उसे कितनी राशि मिलनी चाहिए , फलस्वरूप उसे जो भी मिलता है वह उतने से ही संतुष्टि कर लेता है। अतः राहत देने का फार्मूला आसान हो ।कहा कि बुन्देलखंड में सूखा पीड़ित किसानो द्वारा आत्म हत्याओं का सिलसिला शुरू हो चुका है इसलिए और मौतों का इंतजार न करते हुए सरकार को जल्द ही सहायता की सोचनी चाहिए। श्री पाण्डेय ने कहा कि वैसे तो इस वर्ष पूरे भारत में ही सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है किंतु बुन्देलखंड कि स्तिथि इसलिए हटकर है क्योंकि यहाँ सूखा का पहला साल नही बल्कि पिछले पॉँच वर्षों से यही हालत है। इसलिए सरकार को बुन्देलखंड के किसानो के बारे में प्राथमिकता से सोचना होगा। राहत प्रदान करते समय भी बुन्देलखंड के किसानो को देश के अन्य हिस्सों के किसानो से तुलना न करते हुए विशेष अधिभार दिया जाए।बताया कि बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी यहाँ के किसानों की समस्याओं को लेकर विशाल आन्दोलन शुरू करने जा रही है.
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर ९:४१ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: झांसी, बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी, बुंदेलखंड समाचार, बुन्देलखंड, संजय पाण्डेय
रविवार, २१ जून २००९
बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी करेगी संसद मार्ग पर प्रदर्शन
पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग बुलंद करने के लिए जुलाई में आगामी बजट सत्र के दौरान बुन्देलखण्ड एकीकृत पार्टी के हजारों कार्यकर्त्ता दिल्ली में संसद मार्ग पर जोर दार हल्ला बोलेंगे । धरना प्रदर्शन के उपरांत पार्टी कार्यकर्त्ता प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह को ज्ञापन देकर यूपीए सरकार से मांग करेंगे कि पृथक बुन्देलखंड राज्य की मांग को अमली जमा पहनाने के लिए संसद में इस आशय का अधिनियम पारित करवाने के लिए संवैधानिक कार्यवाही आरम्भ की जाये.
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर १०:०७ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: आगामी बजट सत्र, धरना, प्रदर्शन, बुन्देलखण्ड एकीकृत पार्टी, संसद मार्ग
शुक्रवार, ८ मई २००९
बुन्देलखंड से उठा था भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का जनांदोलन
इतिहास की इबारत गवाही देती है कि हिंदुस्तान की आजादी के प्रथम संग्राम की ज्वाला मेरठ की छावनी में भड़की थी। किन्तु इन ऐतिहासिक तथ्यों के पीछे एक सचाई गुम है, वह यह कि आजादी की लड़ाई शुरू करने वाले मेरठ के संग्राम से भी 15 साल पहले बुन्देलखंड की धर्मनगरी चित्रकूट में एक क्रांति का सूत्रपात हुआ था। पवित्र मंदाकिनी के किनारे गोकशी के खिलाफ एकजुट हुई हिंदू-मुस्लिम बिरादरी ने मऊ तहसील में अदालत लगाकर पांच फिरंगी अफसरों को फांसी पर लटका दिया। इसके बाद जब-जब अंग्रेजों या फिर उनके किसी पिछलग्गू ने बुंदेलों की शान में गुस्ताखी का प्रयास किया तो उसका सिर कलम कर दिया गया। इस क्रांति के नायक थे आजादी के प्रथम संग्राम की ज्वाला मेरठ के सीधे-साधे हरबोले। संघर्ष की दास्तां को आगे बढ़ाने में बुर्कानशीं महिलाओं की ‘घाघरा पलटन’ की भी अहम हिस्सेदारी थी।आजादी के संघर्ष की पहली मशाल सुलगाने वाले बुन्देलखंड के रणबांकुरे इतिहास के पन्नों में जगह नहीं पा सके, लेकिन उनकी शूरवीरता की तस्दीक फिरंगी अफसर खुद कर गये हैं। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा लिखे बांदा गजट में एक ऐसी कहानी दफन है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। गजेटियर के पन्ने पलटने पर मालूम हुआ कि वर्ष 1857 में मेरठ की छावनी में फिरंगियों की फौज के सिपाही मंगल पाण्डेय के विद्रोह से भी 15 साल पहले चित्रकूट में क्रांति की चिंगारी भड़क चुकी थी। दरअसल अतीत के उस दौर में धर्मनगरी की पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे अंग्रेज अफसर गायों का वध कराते थे। गौमांस को बिहार और बंगाल में भेजकर वहां से एवज में रसद और हथियार मंगाये जाते थे। आस्था की प्रतीक मंदाकिनी किनारे एक दूसरी आस्था यानी गोवंश की हत्या से स्थानीय जनता विचलित थी, लेकिन फिरंगियों के खौफ के कारण जुबान बंद थी।कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाते हुए मराठा शासकों और मंदाकिनी पार के ‘नया गांव’ के चौबे राजाओं से फरियाद लगायी, लेकिन दोनों शासकों ने अंग्रेजों की मुखालफत करने से इंकार कर दिया। गुहार बेकार गयी, नतीजे में सीने के अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रही। इसी दौरान गांव-गांव घूमने वाले हरबोलों ने गौकशी के खिलाफ लोगों को जागृत करते हुए एकजुट करना शुरू किया। फिर वर्ष 1842 के जून महीने की छठी तारीख को वह हुआ, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। हजारों की संख्या में निहत्थे मजदूरों, नौजवानों और बुर्कानशीं महिलाओं ने मऊ तहसील को घेरकर फिरंगियों के सामने बगावत के नारे बुलंद किये। खास बात यह थी कि गौकशी के खिलाफ इस आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम बिरादरी की बराबर की भागीदारी थी। तहसील में गोरों के खिलाफ आवाज बुलंद हुई तो बुंदेलों की भुजाएं फड़कने लगीं।देखते-देखते अंग्रेज अफसर बंधक थे, इसके बाद पेड़ के नीचे ‘जनता की अदालत’ लगी और बाकायदा मुकदमा चलाकर पांच अंग्रेज अफसरों को फांसी पर लटका दिया गया। जनक्रांति की यह ज्वाला मऊ में दफन होने के बजाय राजापुर बाजार पहुंची और अंग्रेज अफसर खदेड़ दिये गये। वक्त की नजाकत देखते हुए मर्का और समगरा के जमींदार भी आंदोलन में कूद पड़े। दो दिन बाद 8 जून को बबेरू बाजार सुलगा तो वहां के थानेदार और तहसीलदार को जान बचाकर भागना पड़ा। जौहरपुर, पैलानी, बीसलपुर, सेमरी से अंग्रेजों को खदेड़ने के साथ ही तिंदवारी तहसील के दफ्तर में क्रांतिकारियों ने सरकारी रिकार्डो को जलाकर तीन हजार रुपये भी लूट लिये। आजादी की ज्वाला भड़कने पर गोरी हुकूमत ने अपने पिट्ठू शासकों को हुक्म जारी करते हुए क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए कहा। इस फरमान पर पन्ना नरेश ने एक हजार सिपाही, एक तोप, चार हाथी और पचास बैल भेजे, छतरपुर की रानी व गौरिहार के राजा के साथ ही अजयगढ़ के राजा की फौज भी चित्रकूट के लिए कूच कर चुकी थी। दूसरी ओर बांदा छावनी में दुबके फिरंगी अफसरों ने बांदा नवाब से जान की गुहार लगाते हुए बीवी-बच्चों के साथ पहुंच गये। इधर विद्रोह को दबाने के लिए बांदा-चित्रकूट पहुंची भारतीय राजाओं की फौज के तमाम सिपाही भी आंदोलनकारियों के साथ कदमताल करने लगे। नतीजे में उत्साही क्रांतिकारियों ने 15 जून को बांदा छावनी के प्रभारी मि. काकरेल को पकड़ने के बाद गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद आवाम के अंदर से अंग्रेजों का खौफ खत्म करने के लिए कटे सिर को लेकर बांदा की गलियों में घूमे।काकरेल की हत्या के दो दिन बाद राजापुर, मऊ, बांदा, दरसेंड़ा, तरौहां, बदौसा, बबेरू, पैलानी, सिमौनी, सिहुंडा के बुंदेलों ने युद्ध परिषद का गठन करते हुए बुंदेलखंड को आजाद घोषित कर दिया। बांदा छावनी के अफसर और सिपहसलार-फरमाबरदार बांदा नवाब की पनाह में थे, लिहाजा अंग्रेजों ने मान लिया कि पैर उखड़ चुके हैं। गजेटियर के मुताबिक अंग्रेजों ने एक बारगी जोर लगाया था, लेकिन बिठूर के पेशवा की अगुवाई में मो। सरदार खां, नाजिम, मीर इंशा अल्ला खान की नाकेबंदी के चलते अंग्रेजों की रणनीति धराशायी हो गयी। इस युद्ध में कर्वी के मराठा सरदार के भाई ने मंदाकिनी और यमुना नदी पर अंग्रेजों की सहायता के लिए आने वाली सेना को रोके रखा। इस आंदोलन को धार देने वालों में अगर शीला देवी की घाघरा पलटन का जिक्र नहीं होगा तो बात अधूरी रहेगी। अनपढ़ शीलादेवी ने इस जंग में अहम हिस्सेदारी के लिए महिलाओं को एकजुट किया और फिर पनघटों पर जाकर अन्य महिलाओं को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करना शुरू किया। खास बात यह थी कि घाघरा पलटन में शामिल ज्यादातर महिलाएं बुर्कानशी और अनपढ़ थी, लेकिन क्रांति की इबारत में उनकी हिस्सेदारी मर्दो से कम नहीं रही।“बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी” के संयोजक संजय पाण्डेय कहते है कि जब इस क्रांति के बारे में स्वयं अंग्रेज अफसर लिख कर गए हैं तो भारतीय इतिहासकारों ने इन तथ्यों को इतिहास के पन्नों में स्थान क्यों नहीं दिया?सच पूछा जाये तो यह एक वास्तविक जनांदोलन था क्योकि इसमें कोई नेता नहीं था बल्कि आन्दोलनकारी आम जनता ही थी इसलिए इतिहास में स्थान न पाना बुंदेलों के संघर्ष को नजर अंदाज करने के बराबर है.कहा कि बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी प्रचार प्रसार के माध्यम से बुंदेलों की यह वीरता पूर्ण कहानी सारी दुनिया तक पहुचायेगी
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर १२:३२ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: घाघरा पलटन, जनांदोलन, बुंदेलखण्ड, मेरठ के संग्राम, संजय पाण्डेय
बृहस्पतिवार, ७ मई २००९
पृथक बुन्देलखंड हेतु अब होगी निर्णायक लडाई
पृथक बुन्देलखंड राज्य की मांग में बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी द्वारा पिछले वर्षों में किए गए संघर्ष का परिणाम यह है कि एक वर्ष से राष्ट्रीय नेताओं की जुबान पर बुन्देलखंड का मुद्दा आने लगा है । एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय के अनुसार यह इस मुद्दे का सेमी फाईनल कहा जा सकता है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे का आना अपने आप में एक सफलता है। किंतु बड़े दलों द्वारा लोक सभा चुनाव में नज़रअंदाज कर देना निश्चित रूप से हमारी असफलता है ,अभी हम इसके लिए उन्हें मजबूर नही कर सके। किंतु अब बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी इस हेतु निर्णायक लडाई लड़ने कि तैयारी में है । हम बहुत जल्द ऐसी स्तिथि पैदा कर देंगे कि केन्द्र और राज्य सरकारों को विवश होकर पृथक बुन्देलखंड राज्य के मामले में संवैधानिक कार्यवाही करनी पड़ेगी।
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर ११:१८ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: बुंदेलखंड समाचार, बुंदेलखण्ड, बुन्देलखंड, संजय पाण्डेय
लफ्फाजी का शिकार हुआ पृथक बुन्देलखंड राज्य का मुद्दा

बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पाण्डेय के अनुसार बुन्देलखंड राज्य निर्माण का मुद्दा राष्ट्रीय नेताओं की लफ्फाजी का शिकार हुआ है। कहा कि बीते वर्ष इस मुद्दे को लेकर जिन नेताओं ने बयानबाजियां की वही नेता एन वक्त पर इस मुद्दे को नज़र अंदाज कर गए । दर असल पिछले साल की शुरुआत में ही मायावती और राहुल गाँधी ने बुन्देलखंड में हुई अपनी अपनी सभाओं में कहा था कि वे पृथक बुन्देलखंड के हिमायती हैं पर लोक सभा चुनाव में न तो कांग्रेस ने और न ही बसपा ने इस मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्थान दिया । हालाँकि बुन्देलखंड एकीकृत पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों ने इस मुद्दे को चुनावी रूप देने की कोशिश की।
प्रस्तुतकर्ता बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी पर १०:३२ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: अलग प्रान्त, एकीकृत पार्टी, बसपा, संजय पाण्डेय
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जो देखता हूं, वहीं बोलने का आदी हूं...मैं अपने शहर का सबसे बड़ा फसादी हूं

जो देखता हूं, वहीं बोलने का आदी हूं...मैं अपने शहर का सबसे बड़ा फसादी हूंलघु सिंचाई विभाग द्वारा कराए गए कामों की मांगी जानकारी जन सूचना अधिकार अधिनियम का किया प्रयोग

Posted on 10 June 2010 by admin

चित्रकूट - जन सूचना अधिकार एक ऐसा हथियार है जिसका उपयोग कर सरकारी विभागों में अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किया जा रहे घोटाले का खुलासा करके कोई भी इनके खिलाफ कार्रवाई करवा सकता है। इसी हथियार का प्रयोग करते हुए मजदूर सभा के महासचिव ने लघु सिंचाई विभाग से कई बिन्दुओं पर जानकारी मांगी है।

मजदूर सभा के महासचिव महेन्द्र कुमार ओबेराय ने सहायक अभियन्ता लघु सिंचाई कर्वी को जन सूचना अधिकार के तहत लिखे गए पत्र में विभाग द्वारा कराए जाने वाले कार्यों की जानकारी चाहीं है। इसके अलावा उन्होंने वर्ष 2008-09 व 2009-10 में उन ग्राम पंचायतों और स्थानों के नामों की जानकारी मांगी है जहां विभाग द्वारा चेकडैमों का निर्माण किया गया है। इसी तरह निर्माण कार्यो में प्रयोग किए जाने वाले सीमेंट, बालू, ईंटा, पत्थर, लोहा आदि की दर व सप्लाई करने वाली फर्मो के साथ तारीखों की सूचना भी उपलब्ध कराने के लिए पत्र में लिखा है। ओबेराय ने वर्ष 2008-09 और 2009-10 में लघु सिंचाई विभाग द्वारा बोरिंग कराए जाने वाले स्थानों सहित इनके टेण्डर व दर आदि का भी विवरण मांगा है। उन्होंने इसके लिए निर्धारित कीमत का पोस्टल आर्डर भी लगाया है। साथ ही अपने यह पत्र उन्होंने शासन के मुख्य सचिव को भी भेजा है।

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उड़ाया गया जन सूचना अधिकार का मजाक

Posted on 09 March 2010 by admin

बाल विकास परियोजना कार्यालय से मांगी थी सूचना

चित्रकूट (उत्तर प्रदेश) - कई बार उच्चाधिकारियों ने दिए कड़े निर्देश, कई बार सम्बंधित अधिकारियों को हुआ जुर्माना इसके बावजूद भी जन सूचना अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाएं विभागीय अधिकारियों द्वारा नहीं उपलब्ध कराई जा रही है। एचआरएलएन के जिला समन्वयक रुद्र प्रसाद मिश्रा का कहना है कि शायद इन अधिकारियों को विभाग में चल रहे भ्रष्टचार की पोल खुलने का भय सताता है जिसके चलते विभागीय कर्मी लोगों द्वारा मांगी गई सूचनाएं नही उपलब्ध कराते।

ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के जिला समन्वयक रुद्र प्रसाद मिश्रा का कहना है कि बाल विकास योजना कार्यालय व इसके अन्तर्गत संचालित आंगनवाड़ियों में सम्बंधित लोगों द्वारा जमकर भ्रष्टाचार मचाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि जहां एक ओर आंगनबाड़ी में आने वाला पुष्टाहार पशुओं का स्वास्थ्य बढ़ाने में प्रयोग होता है। वहीं दूसरी ओर आंगनबाड़ी सहायिकाओं का भी उत्पीड़न होता है। आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मानदेय समय से नहीं मिलता और न ही उनकी उपस्थिति के हस्ताक्षर बनवाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि बीती 25 जून 09 को उन्होंने पंजीकृत डाक से पत्रा भेज जिला कार्यक्रम अधिकारी से विभाग में हो रहे भ्रष्टचार से सम्बंधित सूचनाएं मांगी थी। लेकिन उन्हें सूचनाएं नहीं उपलब्ध कराई गईं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लालापुर के आंगनबाड़ी केन्द्र में हो रहे बाल पोषाहार के दुरुपयोग व सहायिका को 6 माह से मानदेय न मिलने की जानकारी भी मांगी गई थी। श्री मिश्रा ने कहा कि जबकि जन सूचना अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाएं समय से उपलब्ध कराने के निर्देश शासन ने विभागीय अधिकारियों को दिए है और इसे कड़ाई से लागू करने के लिए समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं। फिर भी अधिकारियों द्वारा इस ओर से अनदेखी की जाती है। उन्होंने सम्बंधित अधिकारियों से इस सम्बंध में उचित कार्रवाई करने की मांग की है।

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* ‘सूचना का अधिकार २००५ के सामाजिक प्रभाव’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन १५ -१६ जनवरी को किया गया.
* कैग के ऑडिट दायरे में आएं एनजीओ - उपराष्ट्रपति
* निजी कंपनी भी हो सकती है सूचना-अधिकार के दायरे में
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* तीन माह बाद भी नहीं मिली जन सूचना अधिकार के तहत सूचना -मुख्य विकास अधिकारी से मांगी गई थी सूचना

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