Monday, March 21, 2011

बुंदेलखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषिक इकाइयों में अद्भुत समानता है

बुंदेलखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषिक इकाइयों में अद्भुत समानता है । भूगोलवेत्ताओं का मत है कि बुंदेलखंड की सीमाएँ स्पष्ट हैं, और भौतिक तथा सांस्कृतिक रुप में निश्चित हैं। वह भारत का एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें न केवल संरचनात्मक एकता, भौम्याकार की समानता और जलवायु की समता है, वरन् उसके इतिहास, अर्थव्यवस्था और सामाजिकता का आधार भी एक ही है। वास्तव में समस्त बुंदेलखंड में सच्ची सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक एकता है ।

बुंदेलखंड के उत्तर में यमुना नदी है और इस सीमारेखा को भूगोलविदों, इतिहासकारों, भाषाविदों आदि सभी ने स्वीकार किया है । पश्चिमी सीमा-चम्बल नदी को भी अधिकांश वीद्वानों ने माना है, परंतु ऊपरी चम्बल इस प्रदेश से बहुत दूर हो जाती है और निचली चम्बल इसके निकट पड़ती है । वस्तुत: मध्य और निचली चम्बल के दक्षिण में स्थित मध्यप्रदेश के मुरैना और भिण्ड जिलों में बुंदेली संस्कृति और भाषा का मानक रुप समाप्त-सा हो जाता है । चम्बल के उस पार इटावा, मैनपुरी, आगरा जिलों के दक्षणी भागों का कोई प्रश्न ही नहीं उठता । भाषा और संस्कृति की दृष्टि से ग्वालियर और शिवपुरी का पूर्वी भाग बुंदेलखंड में आता है और साथ ही उत्तर प्रदेश के जालौन जिले से लगा हुआ भिण्ड का पूर्वी हिस्सा (लहर तहसील का दक्षिणी भाग) भी, जिसे भूगोलविदों ने बुंदेलखंड क्षेत्र में सम्मिलित किया है । अतएव इस प्रदेश की उत्तर-पशचिम सीमा में मुरैना और शिवपुरी के पठार तथा चम्बल-सिंध जलविभाजक, जोकि उच्च साभूमि है, आते हैं । वास्तव में, यह सीमा सिंध के निचले बेसिन तक जाती है और वह स्थायी अवरोधक नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि चम्बल और कुमारी नदियों के खारों और बीहड़ों तथा दुर्गम भागों के कारण एवं मुरैना और शिवपुरी के घने जगलों के होने से बुंदेली भाषा और संस्कृति का प्रसार उस पार नहीं जा सका । बुंदेलखंड का पश्चिमी सीमा पर ऊपरी बेतवा और ऊपरी सिंध नदियाँ तथा सीहोर से उत्तर में गुना और शिवपुरी तक फैला मध्यभारत का पठार है । मध्यभारत के पठार के समानांतर विध्यश्रेणियाँ भोपाल से लेकर गुना तथा शिवपुरी के कुछ भाग तक फैली हुई हैं और अवरोधक का कार्य करती हैं ।-२१ इस प्रकार पश्चिम में रायसेन जिले की रायसेन और गौहरगंज तहसीलों के पूर्वी भाग, विदिशा जिले की विदिशा, बासौदा और सिरोंज तहसीलों के पूर्वी भाग; जिनकी सीमा बेतवा बनाती है; गुना जिले की अशोकनगर (पिछोर) और मुंगावली तथा शिवपुरी की पिछोर और करैरा तहसीलें, जिनकी सीमा अपर सिंध बनाती है, बुंदेलखंड के पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र हैं । इनमें विदिशा और पद्मावती (पवायाँ) के क्षेत्र इतिहासप्रसिद्ध रहे हैं । विदिशा दशार्णी संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है । वैदिश और पद्मावती कै नागों की संस्कृति बुंदेलखंड के एक बड़े भू-भाग में प्रसरित रही है । चंदेलों के समय वे इस जनपद के अंग रहे हैं । सिद्ध है कि इन क्षेत्रों की संस्कृति और भाषा जितनी इस जनपद से मेल खाती है, उतना ही उनका प्राकृतिक परिवेश और वातावरण ।

भौतिक भूगोल में बुंदेलखंड की दक्षिणी सीमा विंध्यपहाड़ी श्रेणियाँ बताई गयी हैं, जो नर्मदा नदी के उत्तर में फैली हुई हैं ।-२२ लेकिन संस्कृति और भाषा की दृष्टि से यह उपयुक्त नहीं है, क्येंकि सागर प्लेटो के दक्षिण-पूर्व से जनपदीय संस्कृति और भाषा का प्रसार विंध्य-श्रेणियों के दक्षिण में हुआ है । इतिहासकारों ने नर्मदा नदी को दक्षिणी सीमा मान लिया है, संभवत: छत्रसाल बुंदेला की राज्य-सीमा को केन्द्र में रखकर; लेकिन जनपदीय संस्कृति और भाषा विंध्य-श्रेणियों और नर्मदा नदी से प्राकृतिक अवरोधक पार कर होशंगाबाद और नरसिंहपुर जिलों तक पहुँच गई है । भूगोलवेत्ता सर थामस होल्डिच के अनुसार सभी प्राकृतिक तत्त्वों में एक निश्चित जलविभाजक रेखा, जो एक विशिष्ट पर्वतश्रेणी द्वारा निर्धारित होती है, अधिक स्थायी और सही होती है ।-२३ अतएव प्रदेश की दक्षिणी सीमा महादेव पर्वतश्रेणी (गोंडवाना हिल्स) और दक्षिण-पूर्व में मैकल पर्वतश्रेणी उचित ठहरती है । इस आधार पर होशंगाबाद जिले की होशंगाबाद और सोहागपुर तहसीलें तथा नरसिंहपुर का पूरा जिला बुंदेलखंड के अंतर्गत आता है । कुछ भाषाविदों ने इन क्षेत्रों के दक्षिण में बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट और मंडला जिलों अथवा उनके कुछ भागों को भी सम्मिलित कर लिया है, पर उनकी भाषा शुद्ध बुंदेली नहीं है, और न ही उनकी संस्कृति बुंदेलखंड से मेल खाती है । इतना अवश्य है कि बुंदेली संस्कृति और भाषा का यत्किचिंत प्रभाव उन पर पड़ा है । ऊँचाई पर श्थित होने से कारण वे पृथक् हो गये हैं । महादेव-मैकल पर्वतश्रेणियाँ उन्हें कई स्थलों पर अलग करती हैं और अवरोधक सिद्ध हुई हैं ।

दक्षिणी सीमा के संबंध में एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि विंधयश्रेणियों और नर्मदा नदी को पार कर बुंदेली संस्कृति और भाषा यहाँ कैसे आई ? इस समस्या का उत्तरह इतिहास में खोजा जा सकता है । इतिहासकार डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल का मत है कि भारशिवों (नवनागों) और वाकगटकों के इस क्षेत्र में बसने से कारण दक्षिण के इस भाग का संबंध बुंदेलखंड से इतना घनिष्ट हो गया था कि दोनों मिलकर एक हो गये थे और उस समय इन दोनों प्रदेशों में जो एकता स्थापित हुई थी, वह आज तक बराबर चली आ रही है । साठ वर्षीं तक नागों के यहाँ रहने के इतिहास के यह परिणाम निकला है कि यहाँ के निवासी भाषा और संस्कृति के विचार से पूरे उत्तरी हो गये हैं ।-२४ गुप्तों के समय वाकाटक भी यहाँ रहे। कुछ विद्वान् झाँसी जिले के बागाट या बाघाट को, जो बिजौर या बीजौर के पास है, वाकाटकों का आदिस्थान सिद्ध करते हैं, जबकि कुछ इतिहासकार पुराणों में कथित किलकिला प्रदेश का समीकरण पन्ना प्रदेश से करते हुए उसे वाकाटकों की आदि भूमि मानते हैं । वाकाटकों के बाद जेजाभुक्ति के चंदेलों और त्रिपुरी के कलचुरियों के राज्यकाल में भी यह क्षेत्र बुंदेलखंड से जुड़ा रहा । इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि बुंदेलखंड की दक्षिणी सीमा महादेव पर्वतश्रेणी की गोंडवाना हिल्स है, जो जबलपुर के पूर्व में मैकल पर्वतश्रेणी से मिल जाती है ।

बुंदेलखंड के पूर्व में मैकल पर्वतश्रेणियाँ, भानरेर श्रेणियाँ, कैमूर श्रेणियाँ और निचली केन नदी है । दक्षिण-पूर्व में मैकल पर्वत है, इस कारण नरसिंहपुर जिले के पूर्व में स्थित जबलपुर जिले के दक्षिण-पश्चिमी समतल भाग अर्थात् पाटन और जबलपुर तहसीलों का दक्षिण-पश्चिमी भाग बुंदेलखंड के अंतर्गत आ गया है । उनकी भाषा और संस्कृति बुंदेली के अधिक निकट है, किंतु दमोह पठार के दक्षिण-पूर्व में स्थित भानरेर रेंज पाटन और जबलपुर तहसीलों के उत्तरी और उत्तरपूर्वी भागों को बुंदेलखंड से विलग कर देती है । भानरेर श्रे

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