Saturday, April 23, 2011

Published: Tue, 27 Apr 2010
_केवल वीआईपी को ऑल इण्डिया शस्त्र लाइसेंस देना कहीं केन्द्र सरकार को पड़े न महँगा
_बुन्देलखण्ड क्षेत्र में धधक रही हैं आक्रोश की ज्वालायें।
_काग्रेंस के मिशन 2012 में यह कानून साबित हो सकता है पलीता।

चित्रकूट। शस्त्र संस्कृति के लिये कुख्यात बुन्देलखण्ड क्षेत्र में केन्द्र सरकार द्वारा जारी शस्त्र अधिनियम अध्यादेश के नये नियमों को लेकर जबर्दस्त आक्रोश है। लोगों ने इस निर्णय को तुगलकी फरमान की संज्ञा से नवाज़ा है। आलम यही रहा और आक्रोश नहीं थमा तो कागें्रस के मिशन 2012 को भी इस क्षेत्र में झटका मिलने से इंकार नहीं है।
बताते चलें कि वीर भूमि बुन्देलखण्ड का इतिहास ही हमेशा शस्त्रों से जुड़ा रहा है। प्राचीन समय में यहाँ मल्लयुद्ध के ज़रिये लोग बाहुबल का प्र्रदर्शन करते थे। लगभगलगभग प्रत्येक घर में एक युवा को अच्छा खानपान देकर उसे बाहुबली बनाया जाता था। फिर आया लठैतों का युग। इस समय मल्लयुद्ध का स्थान ले लिया लठैतों की फौज ने। धनबल और ऐश्वर्य का प्रदर्शन इन्ही लठैतों के आधार पर होने लगा। जिस आदमी के साथ चारछह हट्टेकट्टे लाठियों से मुश्तैद जवान होते उसे प्रभावशाली माना जाता रहा। धीरेधीरे फिर समय बदला और लाठियों की जगह ले ली बन्दूकों ने। बन्दूक (शस्त्र) बुन्देलखण्ड में शानोशौकत का प्रतीक मानी जाती है। चाहे व्यक्ति के पास रहने के लिये छप्पर हो, साइकिल से या पैदल चलता हो, तन में कपड़े भी फटे पुराने हो लेकिन शस्त्र हर कन्धे में ज़रुर देखने को मिलेगा।
इन शस्त्रों के बल पर ही यहाँ बाहुबली इतराते हैं तो गरीबों ने इन्हीं शस्त्रों को आजीविका का साध्य बना रखा है। लाइसेंस बनवाने के बाद यहाँ के हजारों लोग दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों में जाकर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करके अपने परिवार का लालनपालन कर रहे हैं। आजादी के बाद बुन्देलखण्ड के सातों जिलों चित्रकूट, बाँदा, महोबा, हमीरपुर, झाँसी, जालौन, ललितपुर में शस्त्र लाइसेंसों की बारिश सी कर दी गई लेकिन इसके बावजूद आज भी लोगों में शस्त्र लाइसेंस की भूँख मिटी नहीं है। किसी भी राजनेता या सरकार से सबसे बड़ी अपेक्षा यदि होती है तो यहाँ पानी बिजली सड़क की नहीं बल्कि शस्त्र लाइसेंस की होती है। ऐसी स्थिति और परिस्थिति वाले बुन्देलखण्ड क्षेत्र में काग्रेंस सरकार के एक फरमान ने आक्रोश की ज्वालायें धधका दी हैं।
केन्द्र सरकार ने अभी हाल ही में शस्त्र अधिनियम अध्यादेश में एक नया संशोधन किया है। इस संशोधन के अनुसार अब तीन राज्यों या ऑल इण्डिया का शस्त्र लाइसेंस केवल वीआईपी का ही स्वीकृत होगा। वीआईपी में सांसद, विधायक, मंत्री, डाक्टर और वकील शामिल किये गये हैं। सरकार का यह फरमान अभी जिलाधिकारियों के पास तक नहीं पहुँचा लेकिन इसकी सुगबुगाहट मात्र से ही लोगों में केन्द्र सरकार के खिलाफ आक्रोश है। वर्तमान समय भी हजारों की तादाद में मध्यमवर्गीय लोगों के शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति के लिये जिलों में पड़े हुए है। ऐसे में सरकार के इस आदेश से लोगों को बड़ा झटका सा लगा है। विशेषकर उन युवाओं को जो शस्त्र लाइसेंस बनवाकर रोजीरोज़गार की तलाश में महानगरों की ओर पलायन करने का सपना संजोये थे उनको भी बड़ा धक्का लगा है।
सपा सांसद आरके सिंह पटेल ने केन्द्र सरकार के इस निर्णय में संशोधन की आवश्यकता बताई है। कहा पूँजीपतियों की इस सरकार ने एक बार फिर दिखा दिया है कि उसका आम आदमी से कोई लेना देना नहीं है। चित्रकूट के जिला पंचायत अध्यक्ष वीर सिंह एवं समाजवादी छात्र सभा के राष्ट्रीय सचिव निर्भय सिंह पटेल ने भी शस्त्र अधिनियम के इस नये कानून में बदलाव किये जाने की मांग की हैं। माक्र्सवादी कम्युनिष्ठ पार्टी के जिला सचिव रुद्र प्रसाद मिश्र, भाजपा जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी, प्रान्तीय परिषद सदस्य हेमन्त प्रताप सिंह, उपाध्यक्ष दिनेश तिवारी आदि ने केन्द्र सरकार के इस निर्णय को तुगलकी फरमान की संज्ञा से नवाज़ा है। उधर काग्रेंस पार्टी के नेताओं ने केन्द्र सरकार द्वारा लिये गये इस निर्णय की मुक्तकंठ प्रशंसा की है। पार्टी के पीसीसी पुष्पेन्द्र सिंह, बरातीलाल पाण्डेय, लवलेश श्रीवास्तव, कुशल पटेल, गज्जू प्रसाद फौजी, विजयमणि त्रिपाठी आदि ने पार्टी के इस निर्णय को बुन्देलखण्ड की जनता के साथ एक बहुत बड़ा उपकार बताया है। कहा पार्टी ने सही समय में निर्णय लिया है अन्यथा ऐसी विकट स्थितियां उत्पन्न होने का खतरा था जिससे क्षेत्र की समूची मानवता पर ही संकट मंडराता।

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