Wednesday, January 12, 2011

अनवरत
मै मांगती हूँ तुम्हारी सफलता सूरज के उगने से बुझने तक करती हूँ तुम्हारा इंतजार परछाइयों के डूबने तक दिल के समंदर में उठती लहरों को रहती हूँ थामे तुम्हारी आहट तक खाने में परोस के प्यार निहारती हूँ मुख महकते शब्दों के आने तक समेटती हूँ घर बिखेरती हूँ सपने दुलारती हूँ फूलों को तुम्हारे सोने तक रात को खीच कर खुद में भरती हूँ नींद के शामियाने में सोती हूँ जग-जग के तुम्हारे उठने तक इस तरह पूरी होती है यात्रा प्रार्थना से चिन्तन तक।

1 comment:

  1. अनवरत

    मै मांगती हूँ
    तुम्हारी सफलता
    सूरज के उगने से बुझने तक
    करती हूँ
    तुम्हारा इंतजार
    परछाइयों के डूबने तक
    दिल के समंदर में
    उठती लहरों को
    रहती हूँ थामे
    तुम्हारी आहट तक
    खाने में
    परोस के प्यार
    निहारती हूँ मुख
    महकते शब्दों के आने तक
    समेटती हूँ घर
    बिखेरती हूँ सपने
    दुलारती हूँ फूलों को
    तुम्हारे सोने तक
    रात को खीच कर
    खुद में भरती हूँ
    नींद के शामियाने में
    सोती हूँ जग-जग के
    तुम्हारे उठने तक
    इस तरह
    पूरी होती है यात्रा
    प्रार्थना से चिन्तन तक।

    ReplyDelete