Wednesday, January 12, 2011

कवितातू उठे तो उठ जाते हैं कारवाँमेरे जनाजे में ऐसा काफिला नहीं आता,तू थी तो हर्फ़-हर्फ़ इबादत थातेरे बिना दुआओं में भी असर नहीं आताकभी हर राह की मंजिल थी तेरी गलीअब तेरे शहर से कोई नामाबर नहीं आताएक आंसू नहीं बहाने का वादा थानिभाया, अब लहू आता है अश्क नहीं आतामेरे दिल के दर्द रूह के सुकूंजान जाती है मेरी तू नज़र नहीं आता

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